सपनों का एक थान बुना था
एक गज़ कपड़ा फाड़ लिया
और उम्र की चोली सी ली
आज हमने आसमां के घड़े से
बादल का एक ढकना उतारा
और एक घूंट चांदनी पी ली
यह जो घड़ी हमने
मौत से उधार ली है
गीतों से इसका दाम चुका देंगें
अमृताजी
सपनों का एक थान बुना था
एक गज़ कपड़ा फाड़ लिया
और उम्र की चोली सी ली
आज हमने आसमां के घड़े से
बादल का एक ढकना उतारा
और एक घूंट चांदनी पी ली
यह जो घड़ी हमने
मौत से उधार ली है
गीतों से इसका दाम चुका देंगें
अमृताजी